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आर्थिक विकास के सवाल और बौद्धिक दिवालियापन

आर्थिक विकास के सवाल और बौद्धिक दिवालियापन

१९८४ , सौरभ प्रिंटर्स प्राइवेट लिमिटेड, ग्रेटर नोएडा
Last Imprint
2020

चौधरी चरण सिंह ने इस पुस्तिका को १९८४ लोक सभा चुनावों से पूर्व लिखा। पढ़ने के पश्चात आपको स्वयं एहसास होगा की हिंदुस्तान में गिने चुने राजनेता ही इतनी गहरी सोच रखते थे - या हैं। यह पुस्तिका चौधरी साहब के ५० वर्षों के चिंतन को दर्शाती है। हमारी आशा है इस के सहारे पाठक चौधरी साहब की नजर से आजाद हिंदुस्तान की योजनाओं के औचित्य को एक नए दृष्टिकोण से देख सकेंगे और भारत की आर्थिक विकास की सही दिशा जान सकेगा।

चौधरी साहब गांधीवादी विचारक थे, केवल गाओं के समर्थक होने से कहीं आगे। आज जनता चौधरी साहब को ‘किसान नेता’ कहकर याद करती हैं, परन्तु एक तरह से यह उनकी के लम्बे सार्वजनिक जीवन के व्यापक सोच को नजरअंदाज करता है। वो ऐसी नीतोयों का प्रतिपादन करते थे जो देश में गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक असमानता, और अभावों के निवारण में सार्थक योग दे और साथ-साथ हमारे बाल लोकतंत्र को मजबूत करे। इन नीतोयों में मूल था कृषि पर आधारित गाओं और देश का व्यापक आर्थिक विकास और गाओं में भूमिहीन समाज और कृषि में अतिरिक्त श्रमिकों के लिए गाओं में स्थित घरेलू, छोटे और लघु उद्योगों में भरपूर रोजगार। वह बड़े उद्योग के खिलाफ नहीं थे, गांधीजी की सोच से प्रभावित चाहते थे देश में ऐसे उद्योग लगें और ऐसी मशीनें कार्य में लायी जाएं जो रोजगार का प्रतिस्थापन न करे। उनकी सोच में इन गांधीवादी नीतियों को अमल में लाने के लिए समाज को विकास का दृष्टिकोण में क्रांति लानी होगी, तथा सरकार की संस्थाओं को इन क्षेत्रों में भरी मात्रा में पूँजी का निवेश करना होगा।

१९४७ की राजनैतिक आजादी से आज तक सारे राजनीतिक दल, राजनेता और अधिकांश बुद्धजीवी - पूंजीवादी समाजवादी और साम्यवादी - बड़े उद्योग तथा शहरीकरण के समर्थन में रहे हैं। हमें अगर मन की खिड़कियाँ खोलें और दुनिया को गांधीवादी परिप्रेक्ष्य से देखें, ना की किसी विदेशी और अनुपयुक्त दृष्टिकोण से, तो हम जान सकेंगे की २०२२ में भी चौधरी साहब की मूल नीतियां सार्थक हैं और दशकों तक रहेंगी।

हर्ष सिंह लोहित
चरण सिंह अभिलेखागार, दिल्ली

१५ अगस्त २०२२