Charan SinghArchives

शिष्टाचार

शिष्टाचार

१९५४, किसान ट्रस्ट द्वारा फिर से प्रकाशित
Last Imprint
1994

सन् १९४१ में व्यक्तिगत-सत्याग्रह के आंदोलन में श्री चरण सिंह बरेली सेंट्रल जेल में बंदी रहे। वहां अवकाश की कमी नहीं थी। अपने मित्रों के साथ जेल के एक पेड़ के नीचे कुछ दिन बैठकर पहले के संग्रहित नियमों का पुनरीक्षण हुआ और उनको एक पुस्तक का रूप दे दिया गया। सार्वजनिक जीवन की व्यस्तता से पांडुलिपि कई साल यूं ही रखी रही। विख्यात लेखक श्री भगवती चरण वर्मा ने इस पाण्डुलिपि को देखा और सराहा, और उनके परामर्श से यह जनवरी १९५४ में ’शिष्टाचार’ पहली बार प्रकाशित हुई। सितंबर ४, १९५३ में उत्तर प्रदेश के जब के मुख्य मंत्री श्री गोविंद बल्लभ पंत ने भूमिका में लिखाः

“सदाचार का शिष्टाचार से घनिष्ठ संबंध है। सदाचार सौजन्य की पूंजी है। सदाचार के बिना मनुष्य का जीवन निराधार होता है और शिष्टाचार के बिना सदाचारी पुरुष भी जीवन के माधुर्य से वंचित रह जाता है। हमारे देश में भी सदैव पारस्परिक व्यवहार में स्नेह और सदभाव की झलक दीखती रही है। दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखना और यथासंभव ऐसी बात न करना जिससे दूसरे को ठेस पहुंचे, यह नियम हमारे समाज में हमेशा व्यापक रहा है।

सत्य को सदाचार का सर्वश्रेष्ठ आधार ही मानते हैं। सत्य को भी अप्रिय शब्दों में व्यक्त करना उचित नहीं समझा गया है। कुछ दिनों से पराधीनता के फलस्वरूप हमारी सभी बातों में कुछ न कुछ विकार आ गया है जिससे हमारे शिष्टाचार पर धुंधलापन छा गया। अन्यथा हमारे देश के सभी संप्रदाय और वर्गों में सुंदर शिष्टता और तहजीब बरती जाती रही है। जो कुछ भी हमारी मर्यादा विदेशियों के शासन काल में ढीली हो गई थी, उसे अब हमें ठीक करना चाहिए जिससे हमारा सामाजिक जीवन सर्वथा सुपरा और सरस हो जाये। जीवन के सुख और शांति के लिए शिष्टाचार की उपयोगिता सदाचार से कम नहीं है। शिष्टाचार और अनुशासन के द्वारा वैयक्तिक और सामाजिक जीवन स्वस्थ और सुंदर बन सकेगा, इसी विचार से मेरे सहयोगी मित्र श्री चरण सिंह जी ने इस पुस्तक के लिखने का प्रयास किया है। मुझे आशा है कि इससे हमारे समाज का हित होगा और विशेषकर नवयुवक वर्ग इससे पूरा लाभ उठावेगा।“

View Fullscreen / Download