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भारत की अर्थनीति : गाँधीवादी रूपरेखा

भारत की अर्थनीति : गाँधीवादी रूपरेखा

१९७७, राधा कृष्ण, नई दिल्ली
Last Imprint
1977

१९७७ में प्रकाशित, यह पुस्तक चरण सिंह द्वारा लिखित है, जो उस समय भारत के केंद्रीय गृह मंत्री और जनता पार्टी की आर्थिक नीति पर कैबिनेट कमेटी के अध्यक्ष थे। 

यह पुस्तक भारत के विकास के लिए एक वैकल्पिक मॉडल प्रस्तुत करती है। सरल भाषा में लिखी गई यह पुस्तक सिंह के भारत को जमीनी स्तर से खड़ा करने के सिद्धांतों का संक्षिप्त सूत्रीकरण है। 

सिंह जवाहरलाल नेहरू की आर्थिक नीति ढांचे की आलोचना करते हैं और गांधी जी के उस दृष्टिकोण को नकारने के लिए नेहरू की भर्त्सना करते हैं, जिसमे भारत गांव केंद्रित हो। वे गांधीवादी रेखाओं पर, भारत के भूगोल, जनसंख्या, जनसांख्यिकी और लोकतांत्रिक मान्यताओं के अनुरूप, एक मौलिक रूप से नया नीति खाका निर्धारित करते हैं।

उनकी आर्थिक नीति का लक्ष्य गरीबी, बेरोजगारी और धन असमानता की ‘तीन बुराइयों’ को दूर करना है। इसे उच्च कृषि उत्पादन, भूमि और पूंजी पर रोजगार के अधिकतमकरण, आय में असमानता को कम करने और श्रम का शोषण से बचाव द्वारा प्राप्त किया जाएगा।

सिंह का खाका औद्योगीकरण और कृषि एवं गांवों पर उसके ज्यादातर शहरी लाभार्थियों द्वारा प्राप्त विशेषाधिकारों को उलटने की सिफारिश करता है। साथ ही शहरी-अभिजात वर्ग की योजनाओं में आमूल-चूल परिवर्तन की बात करता है, जिनका जमीनी हकीकतों से बहुत कम लेना-देना था।

सिंह जोर देते हैं कि वे औद्योगीकरण के विरोधी नहीं हैं, बल्कि उसे गांवों को दिए जाने वाले महत्व से अधिक महत्व देने का विरोध करते हैं। वे उस मशीनीकरण का विरोध करते हैं जो मानव श्रम को प्रतिस्थापित करता है, क्योंकि भारत उससे अत्यधिक संपन्न है। वे विदेशी प्रौद्योगिकी और पूंजी पर निर्भरता को भी समाप्त करने का आग्रह करते हैं, जिन पर अब तक विकास के सभी प्रयास आधारित थे।

उनका गांधीवादी नुस्खा श्रम-प्रधान तकनीकों और लघु-उद्योग, विकेन्द्रीकृत उत्पादन का व्यापक अनुप्रयोग है, जो अधिकांश रूप से लोकतंत्र पर आधारित होगा और पूंजीवादी या साम्यवादी व्यवस्थाओं के शोषण के स्थान पर स्व-रोजगार पैदा करेगा।

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