चरण सिंहअभिलेखागार

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'चरण सिंह अभिलेखागार' में चरण सिंह की जीवनी, उनकी विद्वता और चारित्रिक विशिष्टाओं समन्वित की गई हैं । चरण सिंह अभिलेखागार का स्वरुप अराजनैतिक व स्वतंत्र वित्त पोषण पर आधारित है। चरण सिंह अभिलेखागार द्वारा चरण सिंह का चिरतण उनकी जीवन पर्यंत नैतिक एवं सादा जीवन प्रणाली, भारत के विकास में कृषि की महत्ता, देश में गरीबी निवारण, ग्रामीण रोज़गार सृजन तथा साझा आर्थिक दृष्टिकोण पर आधारित सामाजिक न्याय के आलोक में किया गया है ।

चरण सिंह (जन्म २३ दिसंबर १९०२) स्वतंत्र भारत के एकमात्र प्रमुख किसान नेता थे । वर्ष १९८७ में स्वर्गवास तक उनका संपूर्ण जीवन निडर, स्पष्टवादी, सतत समर्पित ग्रामीण भारत की हितों के प्रखर पैरोकार के तौर पर व्यतीत हुआ।

ग्रामीण भारत के मुद्दे, तथा देश के विकास की दशा कमोवेश अंग्रेज़ो के भारत छोड़ने के समय देश स्वतंत्र होने के पश्चात दशकों तक, यथावत ही रही है - शहरी और सादन-सम्पन्न अभिजात्य वर्ग पूँजी एवं अन्य संसाधनों को अपने निहितार्थ योजित करते रहे तथा ग्रामीण भारत को - जहाँ निराशा है और रोज़गार का आभाव है - वंचित करते रहे । यह अभिलेखागार उन वंचितों को मुखरता तथा ग्रामीण केंद्रित आयाम प्रदान करेगा, ताकि पिछड़े सामाजिक परिवेश को समृद्ध किया जा सके ।

चरण सिंह की चारित्रिक विशेषताऐं, व्यक्तित्व तथा उनका ग्रामीण भारत के प्रति बौद्धिक रूप से परिष्कृत दृष्टिकोण तीन महत्वपूर्ण तत्थों पर आधारित हैं, जिन्होंने उनके जीवन पर अमिट प्रभाव डाला। पहला, १९१०-१९२० में उत्तर प्रदेश के कृषि प्रधान मेरठ जनपद के ग्रामीण कृषक परिवार में उनका जनम और परवरिश; दूसरा, १९२०-१९३० के दशक में आर्य समाज अभ्युदय एवं समाज सुधार में योगदान; तीसरा, १९३०-१९५० के दो दशकों में मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अंग्रेज़ो से भारत की आज़ादी का संघर्ष ।

दरम्यानी कद, कोमल आवाज तथा छरहरे बदन के चरण सिंह ने जीवन पर्यन्त हाथ से बने खादी के वस्त्र ही धारण किये, जो उनकी ग्रामीण रोज़गार और हाथ की बुनाई के प्रति गहरे सोच ही नहीं बल्कि उनकी लघु उद्योग तथा सादगी के ओर प्रतिबद्धता का परिचायक था । वह आगुन्तकों, परिवार एवं मित्रों के प्रति सदैव सहृदय एवं मृदुभाषी थे, परन्तु ग्रामीण अन्याय के प्रति उनकी दृढ़ता सदैव उनकी आखों में स्पष्ट प्रतिबिंबित होती थी। परिवारीजनों के प्रति विनोदपूर्ण व्यवहार और स्नेह उनकी विशिष्टा थी। वे सभी के आदर्श ही नहीं, प्रिया भी थे - यह निश्चित रूप से उनकी वैयक्तिक सत्यनिष्ठा, कार्य के प्रति निष्ठा, चिरस्थायी पुरानी नैतिकता और वैयक्तिक संबंधों में पूर्ण विश्वसनीयता का परिणाम था ।

चरण सिंह सभी पत्राचार और दस्तावेज़ों को अत्यंत सावधानी और करीने से संभल कर रखते थे, जिनमे राजनेताओं के साथ उनके निरंतर संवाद और ब्योरे थे - जैसे १९३७ मैं काश्तकारों के हितों पर लिखा गया लेख, जो संयुक्त प्रान्त विधान सभा को सम्बोधित प्रथम आलेख था, सम्मिलित है । उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीय गायत्री देवी द्वारा दस्तावेज़ १९९४ में नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय को सौंप दिए गए प यह 'सम्प्रति चरण सिंह दस्तावेज़' कहलाते हैं । चरण सिंह के स्वर्गवास और नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय को दस्तावेज़ सौंपे जाने के मध्य अनेक दस्तावेज़, छायाचित्र और पुस्तकें विलुप्त हो गयीं। भारतीय समाज की यह दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है कि महापुरुषों की जीवन सामग्री के संरक्षण की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जाता है। महत्वपूर्ण सामग्री धूल-धूसरित हो जाती है। हमारी आकांशा वास्तविकता पर आधारित इतिहास का पुनः अध्ययन की है न कि काल्पनिक रचना करना । इसी उद्देश्य से आग्रह है की नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय मैं संग्रहित बहुमूल्य सामग्री में योगदान करें, जिससे विद्वता को एक नवीन जीवन मिल सके और चरण सिंह अभिलेखागार समृद्ध किया जा सके।

हर्ष सिंह लोहित
२३ दिसंबर २०१५
info@charansingh.org

 

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