मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में २४ जनवरी से १६ जुलाई १९७९ तक वित्त मंत्री। इंदिरा कांग्रेस सहित रजनीतिक दलों के गठबंधन के समर्थन से अल्पकालीन सरकार के प्रधानमंत्री बने।
२४ जनवरी को मोरारजी देसाई से सुलह के विभिन्न प्रयासों के परिणामस्वरूप केंद्रीय मंत्रिमंडल में उपप्रधानमंत्री एवं केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में एक अल्प अवधि, १६ जुलाई तक, के लिए वापिस आये। २८ फरवरी को सांसद में, अपनी शहर विरोधी और ग्रामीण-झुकाव की धारणा को व्यक्त करने वाला केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया। वह जानते थे की यह उनकी केवल एक प्रतीकात्मक, बहुत अल्प और अत्यधिक देर से व्यक्त अभिव्यक्ति है, किन्तु जब एक बार वह यह करने की स्थिति में आ चुके थे, तो उन्हें यह करना ही था।
मोरारजी देसाई से मतभेद जारी रहे, प्रभुत्वशाली जनसंघ घटक एवं जगजीवन राम की साजिशों, एवं अपने प्रतिनिधि राजनारायण के सोचे-समझे गलत कार्य-कलापों और कुछ भूतपूर्व समाजवादियों ने जनता पार्टी का विभाजन तय कर दिया। १६ जुलाई को उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। एक असम्बद्ध संसदीय गठबंधन के समर्थन के आधार पर राष्ट्रपति एन. संजीवा रेड्डी द्वारा भारत के पांचवे प्रधानमंत्री बनने हेतु आमंत्रित किये गए। २८ जुलाई १९७९ को इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई ) के समर्थन से भारत के प्रधानमंत्री बने।
विश्वासमत हासिल करने वाले दिन, विना संसद का सामना किये २० अगस्त १९७९ को कांग्रेस द्वारा इसलिए समर्थन वापिस लिए जाने के चलते त्यागपत्र दे दिया चूँकि वह इस बात के प्रति आश्वस्त नहीं कर सके कि इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के विरुद्ध चल रहे आपराधिक मुकदमों को वह वापिस ले लेंगे। १४ जनवरी १९८० तक कामचलाऊ प्रधानमंत्री के तौर पर, लोकसभा के मध्यावधि चुनाव आयोजित होने तक, वह पद पर बने रहे।