इंडिया'ज इकोनॉमिक पॉलिसी : दि गांधियन ब्लू प्रिंट" का प्रकाशन।

१९७८

इंडिया'ज इकोनॉमिक पॉलिसी : दि गांधियन ब्लू प्रिंट" का प्रकाशन।

यदि हम अपने देश का विकास करना चाहते हैं, तो केवल दो तरीके हैं : पहला, उत्पादकता में प्रति एकड़ वृद्धि और साथ ही साथ प्रति एकड़ श्रमिकों की संख्या में कमी; दूसरा, अपने इस राष्ट्रीय मनोविज्ञान, विशेषकर हिन्दुओं का, रूपांतरण करना होगा कि जगत मिथ्या है। व्यक्तिगत रूप से और एक राष्ट्र के रूप में भी हम विकसित हों और अपने आर्थिक हालात के सुधार पर जोर दें; और इस तरह हमारी जनता काम को बेहतर तरीके से और परिश्रम से करना सीखे.....पृष्ठ ३

........ वृहद् अर्थों में कृषि एवं उद्योग एक दूसरे के सम्पूरक हैं, यह मामला बलाघात और प्राथमिकताओं का है ....... यद्यपि इस सबका अर्थ यह नहीं है कि उद्योग उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी कृषि। यह कृषि ही है] जो आधारभूत भूमिका निभाती है - एक अग्रदूत की।

...... अतः जब तक कि यह देश आर्थिक विकास के मौजूदा ढांचे से प्रतिबद्ध रहता है, जिसमें कि केवल शहरी अभिजात्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए या उनके उत्पादों को बेहद कम मूल्य पर निर्यात करने के लिए भारी लागत पर पूंजी बहुल आधुनिक उद्योग कायम करना शामिल है। इससे न केवल बेरोजगारी में वृद्धि होगी और पूंजी कुछ ही हाथों में केंद्रित होकर रह जाएगी बल्कि इससे धनी देशों की गुलामी का खतरा भी गहरा और गहरा होता जायेगा। इस खतरे से बचने का एकमात्र सही रास्ता, दूसरे शब्दों में आर्थिक एवं तकनीकी तौर पर आत्मनिर्भर बनने का औद्योगीकरण के मौजूदा ढांचे को तोड़ दिया जाये और बदलाव लाने या हालत को बदलने के लिए गांधीवाद का रास्ता अपनाया जाये। पृष्ठ ११५