उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव १९७४ में आयोजित हुए, जिसमें बी.के.डी., एस. एस. पी. और मुस्लिम मजलिस ने चरण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की २१५ सीटों के मुकाबले १०६ सीटें जीतीं। सरकार पर बड़े पैमाने पर मतदान में बल प्रयोग और धांधली के आरोप लगे। यह माना गया की विपक्ष के बीच च वोटों के विभाजन के चलते कांग्रेस अल्पमत (३२%) से जीती है, जबकि बी.के.डी. २१%, जनसंघ १७%, कांग्रेस (ओ) ८% और समाजवादियों ने ३% वोट हासिल किये।
संयुक्त विधायक दल (एस. वी. डी.) के अपने तजुर्वे से सीख लेते हुए, जहाँ आसमान विचारों वाला गठबंधन विरोधाभाषी दिशाओं में भटक गया था, उन्होंने एक सर्वसम्मत पार्टी संविधान, झंडा, चुनाव चिन्ह और नेतृत्व के आधार पर विपक्षी एकता कायम करने के लिए एक गम्भीर प्रयास किया। उनके इन प्रयासों को कांग्रेस (ओ ) और जनसंघ ने धक्का पहुंचाया। इन दोनों पार्टियों ने अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने को प्रमुखता दी। फिर भी कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प देने की दिशा में पहले कदम के रूप में उन्होंने बी.के.डी., स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, उत्कल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक दाल, किसान मजदूर पार्टी और पंजाबी खेती-बाड़ी जमींदारी यूनियन का विलय कर २९ अगस्त को भारतीय लोक दल (बी.एल.डी.) की स्थापना की।