जनवरी में नागपुर में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के ६४वें अधिवेशन में चरण सिंह ने सहकारी खेती के विरुद्ध एक घंटे लम्बा बेहद सुतार्किक और आक्रामक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने सहकारी खेती को एक व्यवस्था के तौर पर, भारतीय स्थितियों के पूरी तरह प्रतिकूल बताया। उनके जोशीले भाषण का जोरदार स्वागत हुआ, किन्तु फिर भी सहकारी कृषि के पक्ष में प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हो गया। सामूहिक या सहकारी खेती को कृषि उत्पादन में वृद्धि लाने वाला नेहरूवादी सिद्धांत माना गया, जिसका शक्ति और अधिकार सम्पन्नता के शिखर पर आसीन नेहरू के विरोध का किसी को साहस न हुआ और इसका विरोध करने वाले को 'प्रतिक्रियावादी' माना गया। इसने चरण सिंह को उनके कुछ मतदाताओं के बीच तो लोकप्रिय बना दिया किन्तु उन्हें नेहरू और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के निशाने पर ला दिया।
बाद में सोवियत रूस और कम्युनिस्ट चीन में सहकारी खेती की असफलता ने चरण सिंह की दूरदृष्टि और भारतीय किसान के प्रति उनके विचारों को वैधता प्रदान की, जबकि नेहरू के अल्पकालिक जोशीलेपन पर यह गंभीर अभियोग था।
चरण सिंह ने २२ अप्रैल को एक-दूसरे से जुड़े विभिन्न मुद्दों, जो १९५४ और उससे भी पहले से अंदर ही अंदर भदक रहे थे, के चलते सरकार से त्यागपत्र दे दिया ; जिनमें प्रमुख थे-- राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति मोहभंग, सरकारी मशीनरी में बढ़ते भ्रष्टाचार के प्रति निष्फलता, राज्य की राजनीती में शहर और व्यापार के प्रति पक्षपात, मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानन्द की व्यक्तिगत अक्षमता, पूंजीपति साहू जैन एवं बिड़ला के हिंडाल्को से सम्बंधित मुद्दे और फिर राज्य कांग्रेस के अंदर दलगत राजनीति में चरण सिंह का अलग-थलग किया जाना। १९३७ से वह पहली बार, १९ माह के लिए, २२ अप्रैल १९५९ से दिसंबर १९६० तक सरकार से बाहर रहे।
"चरण सिंह ने स्पष्ट किया है कि उनके और सम्पूर्णानन्द के बीच जो मुद्दे हैं, वे देश की समस्याओं के समाधान के आंकलन को लेकर बुनियादी मतभेदों को दर्शाते हैं, क्या इनका समाधान कृषि में सुधार और उत्पादन में वृद्धि में निहित है या औद्योगिक विकास में है.... वह वक्तव्य, जो २१ अगस्त १९५९ को विधान सभा में दिया जाना था किन्तु कभी सामने नहीं आया..... ५२ पृष्ठों का एक अति विशिष्ट दस्तावेज है .... यह स्थितियॉं की निर्मम विवेचना है, बेहद विश्लेषणात्मक, राज्य की विकासवादी नीतियों की आद्यान्त अर्थपूर्ण समीक्षा। इस दौर में भारत में कहीं भी इस तरह के कुछ ही वक्तव्य होंगे, जो इतनी परिस्कृत, स्पष्टत और समर्पण भाव से लिखे गये होंगे।" पॉल आर. ब्रास (२०११) एन इंडियन पॉलिटिकल लाइफ, वॉल्यूम, पृष्ठ १४९-१५०