उत्तर प्रदेश विधानसभा में "उ. प्र. चकबंदी अधिनियम -१९५३" पारित करने में मार्ग दर्शन किया और १९५४ से इसे सफलतापूर्वक लागू कराया। उन्होंने उर्वरकों को बिक्री-कर से मुक्त किया और बड़े किसानों से सीलिंग में प्राप्त भूमि को अनुसूचित जाति के लोगों में पुनर्वितरण के लिए एक नीति तैयार की। उन्होंने उन किसानों को, जो साढ़े तीन एकड़ तक की जोत के मालिक थे, लगान में भी छूट दी। उन्होंने पशुओं की बिक्री एवं खरीद को विनियमित करने सम्बन्धी, देश में अपनी तरह का पहला, विधेयक तैयार किया, यद्यपि जी.बी. पंत के दिल्ली चले जाने के चलते यह पारित न हो सका।