१९५६ तक उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधान मंडल दल के महासचिव रहे। मुख्यमंत्री जी. बी. पंत की अध्यक्षता में संयुक्त प्रांत जमींदारी उन्मूलन समिति की रिपोर्ट तैयार करने में भागीदारी की, जिसमें राजस्व मंत्री हुकुम सिंह उपाध्यक्ष और चरण सिंह मुख्यमंत्री के संसदीय सचिव रहे। चरण सिंह ने मुख्यमंत्री जी.बी. पंत को १७ पृष्ठों की एक वय व्यक्तिगत असहमति- टिप्पणी लिखी, इसका अवलोकन कर पंत जी ने उन्हें मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया और इस प्रकार विधेयक पुनः तैयार किया गया। वह विधेयक के प्रमुख वास्तुकार बने और इसी क्रम में राजनीतिक दलों के दांये और बांये खेमों से होने वाले आक्रमणों से इस विधेयक के प्रमुख बचावकर्ता भी।
"उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन : आलोचनाएँ और जवाब" इसने सरकार और खुदकाश्त करने वाले किसानों के बीच से बिचौलियों के रूप में कायम ज़मींदारों को समाप्त कर दिया और एक शांतिपूर्ण एवं सामाजिक ढांचे में शांति की स्थापना की। जिन ज़मीनों पर भूमिहीनों (अनुसूचित जाति एवं दलितों ) ने घर बना रखे थे ऐसे लाखों लोगों को घरों का स्वामी बना दिया; उत्तर प्रदेश में ज़मींदारों को ज़मीन पर पुनः कब्जे का अधिकार नहीं दिया गया (अन्य अधिकांश राज्यों की भांति); और लाखों किसानों को राज्य का सहभागी बनाते हुए लगातार बढ़ रहे समाज के लोकतान्त्रिक ढांचे को मजबूत बनाया, निर्धन-भूमिहीन ग्रामीणों का मुद्दा एक ज्वलंत मुद्दा बना रहा।