१९२२
मीर सिंह मेरठ जिले में भदौला गांव चले आये, जहाँ उन्होंने अपनी बाकी जिन्दगी गुज़ारी
खेती के लिए जमीन का एक अच्छा टुकड़ा भदौला में २१,००० रुपये में उपलब्ध था, लखपत सिंह चाहते थे कि मीर सिंह भी वहां आ जायें। उनके दो भाई ब्रिटिश सेना में थे और उन्होंने १८९९-१९०२ में अफ्रीका के बोअर युद्ध में भाग लिया था; उनके वेतन और पेंशन से पेशगी की रकम ७,००० रुपये देने में मदद मिली। बकाया रकम का भुकतान करने तक आगे के खातों में ज़मीन असली मालिक के स्वामित्व में ही रही। परिवार एक बार फिर इकट्ठा हो गया, संयुक्त परिवार ने हो ज़मीन पर मेहनत शुरू की, अपनी उद्यमी प्रवृत्ति और कृषि-अनुभव के चतले जमीं को उर्वर बनाने, हर-भरा बनाने में मीर सिंह ने मार्ग दर्शन किया, यह लगभग २१ एकड़ ज़मीन थी, जिसे चरण सिंह और उनके दो भाइयों ने १९६१ में बेचा।