Charan Singh: A Brief Life History
Charan Singh: A Brief Life History
Charan Singh: A Brief Life History
Charan Singh: A Brief Life History
२०१९
लेखक
हर्ष सिंह लोहित
प्रकाशक
चरण सिंह अभिलेखागार
बाइंडिंग
पेपरबैक
प्रकाशन भाषा
अंग्रेजी
₹ 299
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चौधरी चरण सिंह की यह संक्षिप्त जीवनी पाठक को स्वामी दयानंद और महात्मा गांधी के मूल प्रभाव के बारे में अवगत कराती है। स्वतंत्रता संग्राम में उनका पूर्ण समर्पण, उसके पश्चात् उत्तर प्रदेश और दिल्ली में उनके लंबे राजनीतिक जीवन और भारत के विकास के लिए एक जटिल, परिष्कृत और सुसंगत रणनीति के साथ ग्रामीण भारत के एक जैविक बुद्धिजीवी के रूप में उनके स्थायी महत्व के बारे में बताया जाता है। चौधरी चरण सिंह के जीवन का विस्तृत घटनाक्रम - चालीस के दशक से लेकर अस्सी के दशक के मध्य तक - भारतीय राजनीति की एक आकर्षक झलक भी है।

सिंह गांधीवादी ढांचे में सादगी, सदाचारिता और नैतिकता के व्यक्ति थे, उनके दृढ़ चरित्र एवं ईमानदारी को सभी ने पहचाना। इस असामान्य विशेषताएं ने उन्हें एक मजबूत प्रशासक और कानून के रक्षक के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई। वे छोटे उत्पादकों और छोटे उपभोक्ताओं के एक मौलिक लोकतांत्रिक समाज में विश्वास रखते थे, जो न तो समाजवादी और न ही पूंजीवादी प्रणाली में एक साथ आए, बल्कि एक ऐसी प्रणाली को महत्व देते थे जो गरीबी, बेरोजगारी, असमानता, जाति और भ्रष्टाचार की विशिष्ट भारतीय समस्याओं को संबोधित करे। इनमें से प्रत्येक मुद्दा समाज के लिए आज भी जटिल है, और चौधरी चरण सिंह के समाधान इन समस्याओं के सुधार और अंतिम उन्मूलन के लिए प्रासंगिक हैं।

एक अल्पज्ञात तथ्य है की चरण सिंह असाधारण क्षमता के विद्वान थे। उन्होंने भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में गांवों और कृषि की केंद्रीयता के अपने विश्वास की पुष्टि करते हुए अंग्रेजी में अनेक पुस्तिका और लेख लिखे, जो आज के भारत के लिए और भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि हम कृषि समाज के बढ़ते संकट से जूझ रहे हैं, हमारी ६७% आबादी अब भी गांवों में रहती है एयर ५०% कृषि पर ही निर्भर है। उनका पहला प्रकाशन १९४८ में उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार समिति की ६११-पृष्ठ की रिपोर्ट थी। उन्होंने कई विद्वत्तापूर्ण पुस्तक अंग्रेज़ी में लिखीं - जमींदारी उन्मूलन: दो विकल्प (१९४७), संयुक्त खेती एक्स-रेड: समस्या और उसका समाधान (१९५९), भारत की गरीबी और उसका समाधान (१९६४), भारत की आर्थिक नीति: गांधीवादी रूपरेखा (१९७८) और भारत की भयावह आर्थक स्तिथि - कारण और उपचार (१९८१)।

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