उत्तर प्रदेश में सत्ता सम्भालने के लिए कांग्रेस के दोनों घटकों द्वारा समर्थन के प्रस्ताव के मद्देनजर इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) की सहायता से चरण सिंह उत्तर प्रदेश में १७ फरवरी को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तथा २९ सितंबर तक बने रहे। चरण सिंह द्वारा बी.के.डी. को कांग्रेस आर. में विलय से मना कर देने पर दोनों दलों के बीच समझौता टूट गया। और इस टूट का एक कारण यह भी रहा की राज्यसभा में उनकी पार्टी के तीन सदस्यों ने भारतीय राजाओं के प्रिविपर्सों को समाप्त करने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी द्वारा लए गए प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।
भ्रष्टाचार के आरोप पर, २८ अप्रैल को सभी ५१ जिला परिषदों को भंग कर दिया।
सक्सेना, एन. एस. (१९९३) इंदिरा : टूवर्ड्स एनार्की १९६७-१९९२, अभिनव प्रकाशन, दिल्ली। वरिष्ठ आई.पी. एस., प्रमुख- सी.आर.पी. एफ., सदस्य - यू.पी. एस. सी., सदस्य- नेशनल पुलिस कमीशन।
"श्री चरण सिंह ....साम्प्रदायिक दंगों के लिए कुख्यात उत्तर प्रदेश राज्य में ऐसे दंगों को शून्य कर देने का जादुई कार्य किया.... ऐसा देश की कानून व्यवस्था को लागू करके किया। कोई भी गलत इरादे से एक पत्थर भी फेंकता तो उसे गिरफ्तार किया जाता, उस पर मुकदमा चलाया जाता और अभियोजन सिद्ध होने पर विना किसी छूट के और विना तथाकथित राजनैतिक बंदियों के लिए उच्च श्रेणी का ख्याल किये जेल भेज दिया जात पृष्ठ २८.
"मुझे उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था के बारे में चरण सिंह के रुख कोजानने के तीन अवसर यथा दिसंबर ७, १९६० से फरवरी १९६२ के मध्य, जब वे उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री थे, अप्रैल १९६७ से फरवरी १९६८ के बीच जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और फरवरी १७, १९७० से अक्टूबर २, १९७० के दौरान जब वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, प्राप्त हुए। पहले अवसर पर जब मैं मेरठ परिक्षेत्र, जो चरण सिंह का गृह क्षेत्र भी था, का डी. आई. जी. था। तीसरे अवसर पर मैं उनकी उत्तर प्रदेश पुलिस का प्रमुख था। सभी तीनों अवसरों पर कानून का उल्लंघन करने वालों को चरण सिंह ने कोई रियायत नहीं दी। उस समय अखबार कुछ अथवा इतर कारणों से चरण सिंह के प्रति प्रतिकूल नजरिया अपनाए हुए थे और जनता के किसी भी वर्ग के विरुद्ध कानून व्यवस्था के उल्लंघन में संलग्न जाटों के उपद्रवी के बारे में बड़े-बड़े अक्षरों में शीर्षक लगाकर ख़बरें छपते, विशेष रूप से हरिजनों से सम्बंधित खबरों को। यदि ऐसा कोई सच या खबर चरण सिंह के संज्ञान में आती तो वे पुलिस को तब तक चैन नहीं लेने देते जब तक अपराधी विना जमानत के जेल में न डाल दिए जाते। ........ मुझे कोई शंका नहीं है की यदि चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते तो कानून व्यवस्था के विरुद्ध उकसाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत या तो चुप हो जाते या फिर जेल में होते। चरण सिंह की यही घोषित नीति थी की ऐसे बंदियों को कभी भी जेलों में उच्च श्रेणी न दी जाये। " पृष्ठ ५२-५३।
"१९७० के शुरुआती दौर में मैं उत्तर प्रदेश पुलिस का प्रमुख था और चरण सिंह मुख्यमंत्री। उनके कुछ अनुयायियों, जो नियमों को नहीं मानते थे, जिनमें राजनारायण प्रमुख थे, द्वारा प्रधानमंत्री की बैठक को बाधित करने की धमकी दी गई। मुख्यमंत्री ने हमें उनके ऐसे किसी भी अनुयायी को गिरफ्तार करने की स्पष्ट स्वतंत्रता दी, यदि वे प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बाधक बनते हैं। परिणाम स्वरूप प्रधानमंत्री की सुरक्षा का कार्य आसान हो गया। " पृष्ठ १२६
"उत्तर प्रदेश पब्लिकमैन इन्क्वायरीेज ऑर्डीनेंस १९६७, भ्रष्टाचार के विरुद्ध सर्वोत्तम अधिनियम है और इसका अधिनियमन चरण सिंह द्वारा किया गया था, जब वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। ........ इस सन्दर्भ में सबसे सही अभिमत यही था जो चरण सिंह ने अपने सार्वजनिक भाषण में कहा कि यदि गृहमंत्री स्वयं भ्रष्ट है तो वह एक अपराधी मोटर चालक से रिश्वत लेते ट्रैफिक कॉंस्टेबल पर कैसे ऊंगली उठा सकता है ?" पृष्ठ १७९