३८ वर्ष बाद, कांग्रेस से सम्बन्ध विच्छेद। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

१९६७

इंदिरा गांधी से समझौता-वार्ता असफल हो जाने पर इसे विश्वासघात बताते हुए १ अप्रैल को १७ विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी । यह अनेक दृष्टांतों में पहली घटना है, जब चरण सिंह के राजनैतिक रस्ते इंदिरा गांधी के रास्तों से टकराए और वे इनमें जीते हों, वरना अधिकांशतः इंदिरा गांधी अपनी कूटनीति के चलते उन्हें पराजित करती आई हैं।" (पॉल ब्रास)

अनेक विपक्षी दलों को मिला कर बने संयुक्त विधायक दल के चरण सिंह सर्व सम्मति से नेता चुने गए। उत्तर प्रदेश के प्रथम गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री पद पर ३ अप्रैल १९६७ से २५ फरवरी १९६८ तक आरूढ़ रहे; और एक ऐसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का आरम्भ किया, जिसने तथाकथित अन्य पिछड़ी जातियों (ओ.बी.सी.) का एक प्रभावी शक्ति के रूप में उभरना तय कर दिया।

१९६७ के लोकसभा चुनावों के बाद, कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक अखिल भारतीय पार्टी बनने पर हुमायूँ कबीर की पहल पर ९ अप्रैल को नई दिल्ली में गैर-कॉंग्रेसी मुख्यमंत्रियों एवं अन्य महत्वपूर्ण नेताओं की एक बैठक बुलाई गई। सभी उपस्थित नेता सैद्धांतिक रूप से अखिल भारतीय पार्टी बनाने पर एकमत हुए और बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा ने सभी गैर शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, विभिन्न राज्यों के विचारधारा वाली पार्टियों के अध्यक्षों एवं महासचिवों को मई १९६७ में पटना में आयोजित होने वाली बैठक में आमंत्रित किया। इस बैठक में एक नए दल - भारतीय क्रांति दल दल के गठन का निर्णय लिया गया और महामाया प्रसाद सिन्हा इसके प्रथम अध्यक्ष के रूप में चुने गए। चरण सिंह इसकी कार्यकारिणी के सदस्य चुने गए। बाद में उन्होंने अपनी जन कांग्रेस पार्टी को बी.के.डी. में विलय कर दिया और दल के अध्यक्ष पद को ग्रहण किया, जो समय के साथ उत्तर प्रदेश में अधिक जनाधार वाला दाल बना।

"भ्रष्टाचार पेचीदगी की हद तक बढ़ गया था। मैँ इसके लिए राजनीतिज्ञों को जिम्मेदार था न की नौकरशाही को। मेरा अनुभव कहता है की अधिकारियों के व्यवहार को राजनैतिक नेतृत्व परिभाषित करता है, वे उन्हीं के दिशा-निर्देशों पर कार्य करते हैं। यह ऐसा है जैसे कि घोड़े और उसके सवार के बीच का सम्बंध। घोड़ा बड़ी जल्दी समझ जाता है कि पीठ पर चढ़ा वाहक घुड़सवारी जानता भी हैं कि नहीं और तुरंत उसे गिरा देता है, यदि वह समझ जाता है कि घुड़सवार अनाड़ी है । ....... भ्रष्टाचार ऊपर से आरम्भ होता है, न कि नीचे से। (नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एण्ड लाइब्रेरी ओरल हिस्ट्री परियोजना के श्यामलाल मनचंदा को लखनऊ, उ.प्र. में १० फ़रवरी १९७२ को दिए गए साक्षात्कार से)।