प्रोफेसर टेरेंस जे. बायर्स आर्थिक और राजनीतिक अध्ययन विभाग, ओरिएंटल और अफ्रीकी अध्ययन स्कूल, लंदन विश्वविद्यालय के एक विख्यात मार्क्सवादी शैक्षणिक और किसान अध्ययन के विद्वान हैं। यह शैक्षिक पत्र १९८८ में 'जर्नल ऑफ़ पीसेंट स्टडीज' नामक किसान अध्ययन के जर्नल में प्रकाशित हुआ था। प्रो० बायर्स द्वारा प्रस्तुत विस्तृत शोध और विश्लेषण असाधारण रूप से सटीक होने के अलावा उनके भारतीय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के ज्ञान तथा प्राथमिक एवं अनुपूरक सामग्री के गहन अध्ययन का परिचायक है। १९८७ में चरण सिंह के निधन के बाद मार्क्सवादी दृष्टि से उनके ऊपर लिखा एवं प्रकाशित हुआ यह शोधपूर्ण संगोष्टीपरक आलेख पूरे भारत में वितरित और बहुचर्चित हुआ।
चरण सिंह आर्काइव के प्रमुख उद्देशयों में से एक यह भी है, जिसके अन्तर्गत चरण सिंह की बौद्धिकता और उनकी प्रकाशित सामग्री को सामने लाना जैसा कि वायर्स ने अपनी मार्क्सवादी स्थिति को प्रभावशाली ढंग से स्पष्टतः प्रस्तुत किया है। केवल भारत ही नहीं अपितु किसी भी मुल्क के, अपनी-अपनी जड़ों से जुड़े सक्रिय राजनीतिज्ञों के लिए चरण सिंह की पुस्तकें एवं राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर उनके विचार अनुपमेय हैं। राजनीति की खुरदरी और असमतल जमीन पर आम जन की राजनीति में सतत सक्रिय रहते हुए कुछ ही राजनीतिज्ञ इतने क्षमतावान हो सकते हैं, जो उस जनता, जिसने उन्हें चुना है, के सच्चे प्रतिनिधि एवं किसी भी स्तर के विद्वान - दोनों की - भूमिकाएं निभाने में सक्षम हों। चरण सिंह दोनों थे - निर्दयता की हद तक ईमानदार एवं कुशल प्रशासक ।
संभवतः बायर्स ने सूचीबद्ध पुस्तकों से बाहर जाकर चरण सिंह द्वारा लिखी गई पुस्तकों का पर्याप्त अध्ययन न किया हो। हालाँकि वह उन कतिपय विद्वानों में (भारत और विदेशों में ) से हैं, जिन्होंने सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में उद्धृत प्राथमिक सामग्री की प्रभावशाली सूची के अन्तर्गत विस्तृत अध्ययन किया है। यदि उन्होंने और अधिक पढ़ा होता तो वे जान जाते कि चरण सिंह ने भूमि सुधार : जमींदारी उन्मूलन बरअक्स भूमि पुनर्वितरण, कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास पर और ग्रामीण जनजीवन में जातिगत एवं भौंडी प्रथाओं का घोर विरोध करते हुए, प्रभावशाली विचार प्रस्तुत किये हैं।
चरण सिंह को अक्सर कुलक भी कहा जाता है, खास तौर पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त साम्यवादियों द्वारा, फिर भी उन्होंने उनके प्रति कभी द्वेष नहीं रखा। वस्तुतः वे राजनीति में साम्यवादियों के घोर विरोधी थे, जबकि हरिकिशन सिंह सुरजीत जैसे भारतीय साम्यवादी नेताओं की मितव्ययिता और उनके सादा जीवन के वे प्रशंसक रहे। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह पूंजीवादी थे, और न ही वह कभी समाजवादी ही रहे। उदाहरण के लिए उन्होंने सार्वजनिक उद्योगों का उनकी काहिली और भ्रष्टाचार के कारण विरोध करते हुए, हमेशा यह चाहा कि ये उद्योग निजी क्षेत्र द्वारा संचालित किये जायँ। साथ ही उन्होंने पूंजीपतियों और पूँजीवादी विकास के अन्तर्गत पैदा होने वाली असमानताओं का भी सदैव विरोध किया। वह नौकरशाही और कुछ हद तक संगठित श्रमिकों के भी पक्षधर नहीं थे, क्योंकि वे उन्हें उनके वर्ग में विशेष सुविधाओं से पोषित अभिजात्य मानते थे।
चरण सिंह ने उन समाधानों को चुना जिन्हें उन्होंने भारतीय परिस्थितियों में श्रेष्ठतम समझा और जो उनकी राय में ग्रामीण एवं ग्राम विकास को लक्षित थे। गाँधी जीकी विचारधारा ने उन्हें काफी हद तक प्रभावित किया और इसीलिए नवपूंजीवादी वर्ग द्वारा उन्हें सदा पिछड़ा हुआ समझा गया।
यहाँ बायर्स द्वारा प्रस्तुत शोध पत्र और उनके दिए गए संक्षिप्त परिचय में इंगित वर्ग-दृष्टि पर वाद-विवाद करने का कोई उद्देश्य नहीं है, क्योंकि चरण सिंह ने स्वयं भी कई बार इनके उत्तर दिए हैं और छोटी जातियों के प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त होने के आरोप को लेकर जिंदगी भर संघर्ष किया है। यह कहना कि गांवों में उच्च और मध्यम जातियों द्वारा छोटी जातियों के प्रति कोई पूर्वाग्रह से ग्रस्त रूढ़िवादी व्यवहार नहीं किया जाता है, हास्यास्पद होगा। लेकिन हमारी जाति - व्यवस्था ऐसी है कि उसमें निम्नतम स्तर पर भी परस्पर पूर्वाग्रहग्रस्त व्यवहार सामान्य बात है, जिसमें हर व्यक्ति अपने से कमतर को ठोकर मारता है और शोषण करता है। एक नेता के लिए जमीन से जुड़ी राजनीति में सफल होने के लिए आवश्यक है कि वह सभी जाति -वर्गों को साथ लेकर चले, पर यह चरण सिंह ही थे, जिन्होंने १९७० में उत्तर भारत की इतर पिछड़ी जातियों को संगठित करने और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से विलग करके इतिहास में अपना स्थान सुरक्षित किया। यही कारण है कि उनके इस कदम से कांग्रेस आज भी उबर नहीं पाई है। निःसंदेह चरण सिंह ग्रामांचल की सभी जातियों को साथ लेकर चलना चाहते थे परंतु विद्यमान जाति - व्यवस्था के दूषित चक्र के चलते वह ऐसा न कर पाये और सीमांत, लघु तथा मध्यम खेतिहरों को सफलतापूर्वक साथ लेकर चलने की उन्होंने कीमत भी चुकाई।
हर्ष सिंह लोहित