चरण सिंह - डॉ विजय राणा साक्षात्कार, दिल्ली

१२ अप्रेल १९८५

श्री विजय राणा १९८५ में बी. बी. सी. हिंदी सेवा में नौजवान प्रसारण पत्रकार थे, और १२ अप्रैल १९८५ को चरण सिंह को उनके निवास १२ तुग़लक़ रोड (दिल्ली) में मिले। डॉ राणा के यह साक्षात्कार बी. बी. सी. रेडियो श्रृंखला 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के १०० साल' का हिस्सा था। यह शायद चरण सिंह का औपचारिक रूप में आख़री साक्षात्कार था - १९८५ नवम्बर मैं उनको मस्तिष्क का आघात (स्ट्रोक) हुआ। इस बहुमूल्य ट्रैक को साझा करने के लिए हम डॉ राणा के ऋणी हैं। डॉ राणा ब्रिटेन में तीस वर्षों से बसे है, और २००१ में बी. बी. सी. हिंदी सेवा के संपादक भी बने। अपने अन्य शैक्षणिक गतिविधियों के बीच www.nrifm.com को प्रवासी भारतीयों के लिए इतिहास, राजनीति, कला और संस्कृति की जानकारी का एक उत्तम केंद्र बनाने में सफल हुए हैं ।

सारांश

यह साक्षात्कार चरण सिंह द्वारा इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) के नेतृत्व में देखी गई विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डालता है। सिंह 1967 में इंदिरा गांधी के खिलाफ 7 राज्यों हरियाणा, यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में वरिष्ठ कांग्रेसियों द्वारा एक साथ विद्रोह के बारे में बात करते हैं। सिंह के अनुसार इस विद्रोह के दोहरे कारण अक्षमता और भ्रष्टाचार थे।

सिंह का कहना है कि कांग्रेस का पतन ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हो गया था क्योंकि वह जनता से दूर होने लगी थी। उन्होंने यह दिखाने के लिए कॉपरेटिव खेती पर नेहरू के आग्रह का उदाहरण दिया कि जिनके पास राजनीतिक शक्ति थी, वे ग्रामीण समाज के कामकाज को नहीं समझते थे और उनका ग्रामीणों के साथ कोई सामाजिक संबंध नहीं था। कांग्रेस नेतृत्व और उसकी नीतियों पर शहरी पूर्वाग्रह का गहरा असर था। सार्वजनिक उद्यमों का बढ़ता घाटा और उसके परिणामस्वरूप उनका निजी हाथों में सौंपना और बढ़ती बेरोजगारी सरकार की खराब आर्थिक नीतियों की अभिव्यक्तियाँ थीं।

पंजाब समस्या के बारे में बात करते हुए, सिंह कहते हैं कि भिंडरावाला सांप्रदायिक ध्रुवीकरण द्वारा वोट इकट्ठा करने के लिए इंदिरा गांधी की रचना है, और उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने गांधी के साथ अपनी बैठक में स्पष्ट शब्दों में यह बात साझा की थी। सत्ता की उनकी इच्छा उनके लिए सर्वोच्च विचार थी 'चाहे इसकी कीमत देश को कुछ भी चुकानी पड़े।'

सिंह ने भविष्य के लिए अपने गांधीवादी दृष्टिकोण को दोहराते हुए इस संक्षिप्त साक्षात्कार का समापन किया: कि कृषि और छोटे उद्योग प्राथमिकता होनी चाहिए।

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