चरण सिंह और कांग्रेस राजनीती, एक भारतीय राजनीतिक जीवन, १९५७ से १९६७ तक, खंड २
चरण सिंह और कांग्रेस राजनीती, एक भारतीय राजनीतिक जीवन, १९५७ से १९६७ तक, खंड २

यह खंड चरण सिंह के कांग्रेस में बढ़ते भृष्टाचार, उसकी नीतियों और अंदरूनी गुटबाज़ी के प्रति बढ़ते असंतोष के बारे में हमें बताता है। अन्यथा, नेहरू और इंदिरा गाँधी का उनके प्रति विरोध और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रमुख राजनैतिक पार्टी के स्थान से पतन की वजह से बढ़ता गया - परिणामस्वरूप उन्होंने १९६७ में कांग्रेस छोड़ी और उत्तर प्रदेश के पहले ग़ैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।
इससे पहले के खंड की ही तरह, यह पुस्तक भी मुख्य रूप से चरण सिंह के राजनीतिक जीवन के दौरान लेखक के उनसे अपने व्यक्तिगत संबंधों, चरण सिंह की राननीतिक फाइलों तक पहुँच और पिछले 50 वर्षों में राजनेताओं, अन्य सार्वजनिक शख्सियतों, किसानों और अन्य लोगों के साथ लेखक के निजी साक्षात्कारों पर आधारित है। यह सुचेता कृपालानी के मुख्य मंत्री कार्यकाल का लेखा-जोखा भी प्रदान करती है जो गुटबाजी के संघर्ष के कारण राजनीतिक दृष्टि से एक बाहरी व्यक्ति होते हुए भी सत्ता में आई। साथ ही उत्तर प्रदेश में क्षेत्रवाद की पृष्ठभूमि की भी यह पुस्तक पड़ताल करती है और उत्तर भारत के राज्यों के पुनर्गठन के मुद्दे पर चरण सिंह की उस भूमिका पर भी प्रकाश डालती है, जिसके बारे में अब तक कम ही जानकारी उपलब्ध थी।
यह पुस्तक ‘उत्तर भारत की राजनीति: 1937 से 1987 तक’ पर कई खंडों में लिखी गई श्रृंखला का द्वितीय खंड है।