ज्वाइंट फॉर्मिंग एक्स–रेड: द प्रोब्लम एंड इट्स सॉल्यूशन
जनवरी १९५९ के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में संयुक्त खेती को भारत की कृषि नीति के रूप में अपनाने के विरोध में लिखी गई पुस्तक "ज्वाइंट फार्मिंग एक्स-रेड" चौधरी चरण सिंह के उस राजनीतिक दल से बौद्धिक मतभेद को दर्शाती है, जिसकी उन्होंने ३५ वर्षों तक सेवा की थी।
यह पुस्तक, जो सितंबर १९५९ में प्रकाशित हुई, कृषि उत्पादन बढ़ाने के साधन के रूप में संयुक्त खेती की कठोर आलोचना करती है। सिंह इसे भारत के ग्रामीण परिदृश्य के लिए उपयुक्त नहीं मानते हैं, जिसके कारण हैं - विविध भौगोलिक परिस्थितियां, सीमित भूमि और पूंजी, जटिल सामाजिक संरचना, विशाल जनसंख्या और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता। पुस्तक विभिन्न महाद्वीपों और विषयों से प्राप्त प्रमाणों के आधार पर यह बताती है कि सामूहिक खेती कृषि उत्पादकता को कैसे नुकसान पहुंचाती है। साथ ही, सिंह साम्यवादी देशों में सामूहिक खेतों की विफलता का भी दूरदर्शिता से पूर्वानुमान लगाते हैं।
सिंह का वैकल्पिक दृष्टिकोण भूमि को पूंजी निर्माण का सीमित कारक मानता है, और वह स्थायी पूंजी निर्माण के लिए उद्योग को नहीं, बल्कि कृषि को प्राथमिकता देने का सुझाव देते हैं। पुस्तक स्वतंत्र छोटे जमींदार किसानों, विकेन्द्रीकृत ग्रामीण उद्योगों, गहन खेती और जनसंख्या नियंत्रण को भारत की समस्याओं का समाधान मानती है। सिंह नेहरू की उस नीति का विरोध करते हुए एक ऐसे नए भारत की योजना का प्रस्ताव रखते हैं, जो जमीनी हकीकत से दूर के मॉडलों की नकल करने वाली ऊपर से नीचे थोपी गई नीति के बजाय जमीनी स्तर से निर्मित हो।
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1959. Joint Farming X-Rayed, The Problem and Its Solution, Charan Singh.pdf | 1.44 मेगा बाइट |
1959 Summary of Joint Farming X-rayed July-2020.pdf | 380.75 किलोबाइट |