फ़रवरी १९७४ में हुए यूपी राज्य चुनावों में कांग्रेस (आर) मुश्किल से बहुमत का आंकड़ा पार कर पाई थी। दूसरी ओर चरण सिंह और बीकेडी के पास अकेले १०५ सीटें थीं, जो विपक्ष में सबसे ज्यादा थीं। इन परिणामों ने ७० के दशक की पार्टी संरचना में कुछ अनोखे बदलावों को जन्म दिया: श्रीमती गांधी द्वारा लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के लिए पेश किए गए खतरे को कई तिमाहियों में तत्काल महसूस किया गया था, लेकिन राम मनोहर लोहिया की मृत्यु के बाद पहले से ही विभाजित वामपंथ अभी चुनौती देने के लिए तैयार नहीं था। एसएसपी विशेष रूप से इस बात पर दो खेमों में बंट गया था कि पार्टी को गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करना चाहिए या नहीं; कुछ लोग उनके "वामपंथी" बदलाव से भ्रमित थे, जबकि अन्य मोहभंग हो गए थे। बाद वाले खेमे के पोस्टर-चाइल्ड लोहिया के अनुयायी राज नारायण थे, जो श्रीमती गांधी से खास तौर पर नाराज थे और उन्हें गिराने की एकमात्र प्रेरणा से काम करते थे। आने वाले महीनों में गठबंधन की राजनीति के भाग्य में उन्हें निर्णायक खिलाड़ी बनना था।