३० सितंबर, १९४९ को माननीय प्रधानमंत्री को लिखे इस पत्र में चरण सिंह ने उन शैक्षणिक संस्थानों को अनुदान बंद करने का सवाल उठाया, जिनका नाम जातियों के नाम पर रखा गया था। उनका मानना था कि जाति राष्ट्रीय एकीकरण और एकजुटता की प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा है।
चरण सिंह ने बाद में १९५३ में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री को इसी तरह का एक पत्र लिखा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी।